रामगढ़ – रानी अवंतिबाई की राजधानी
डिंडोरी जिला मुख्यालय से 23 किमी. की दूरी पर रानी अवंतिबाई के राज्य की राजधानी रामगढ़ के अवशेष मिलते है। खरमेर नदी के किनारे एक ऊँची पहाड़ी में रामगढ़ का महल स्थित था। वर्तमान में रामगढ़ डिंडोरी जिले के अमरपुर विकासखंड में स्थित है। पूर्व में यह मंडला जिले का हिस्सा था किन्तु 1998 में मंडला जिले के विभाजन के बाद यह डिंडोरी जिले में शामिल हो गया। 1951 ई. तक डिंडोरी जिले का क्षेत्र रामगढ़ के नाम से ही जाना जाता था।
वर्तमान में रामगढ़ की स्थिति
वर्तमान में रामगढ़ ग्राम में एक टीलानुमा पहाड़ी संरचना पर रानी अवन्ती बाई के महल के अवशेष और निशान बचे हुए है। महल के सामने एक राधा- कृष्ण मंदिर स्थित है, इसमें गणेश प्रतिमा भी है। यह मंदिर रानी अवन्ती बाई के वंशजो द्वारा निर्मित है।
म.प्र. शासन द्वारा 1988-89 में इस स्थान में एक पार्क बनवा दिया गया है, जिसमे घोड़े में सवार रानी अवंतिबाई की सफ़ेद रंग की प्रतिमा लगाई गई है। प्रतिवर्ष 20 मार्च को बलिदान दिवस और 16 अप्रैल को जन्मदिवस पर इस पार्क में रानी अवंतिबाई की याद में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये जाते है।
रामगढ का इतिहास
गोंड राजवंश के समय राजा संग्राम शाह के 52 गढ़ में रामगढ़ एक था। तत्कालीन नाम अमरगढ़ था। गोंड राजा निजाम शाह के शासन में रामनगर में आदमखोर शेर ने आतंक मचाया था, जिसे मुकुटमणि और मोहनसिंह नमक भाइयों ने मारा था। जिसमे मुकुट मणि भी मरे गये थे। निजामशाह ने बहादुरी से खुश होकर मोहन सिंह को सेनापति की उपाधि से सम्मानित किया।
मोहन की मृत्यु के बाद राजा निजामशाह ने मुकुटपुर गढ़ का जमीदार गाजी सिंह को बना दिया। इस समय मुकुटपुर में डाकुओं और विद्रोहियों का वर्चस्व था। गाजी सिंह ने इनका आतंक खत्म किया और राजा ने प्रसन्न होकर रामगढ़ की जागीर इन्हें दे दी और इन्हें राजा की उपाधि दी गई। इनके बाद इसी वंश में राजा लक्ष्मण सिंह हुए और उनके पुत्र विक्रमजीत का विवाह सिवनी के ग्राम मनखेड़ी के जमींदार राव जुझार सिंह की पुत्री अवन्ती बाई से हुआ।
रानी अवन्ती बाई और रामगढ़
रामगढ़ राज्य रानी अवंतिबाई के चरमोत्कर्ष पर था, तब रामगढ़ 4000 वर्ग मील में फैला था इसमें मेहंदवानी, रामगढ, रामपुर, शाहपुर, शाहपुरा, प्रतापगढ़, मुकुटपुर, चौबीसा और करोतिया नामक 10 परगने और 681 गाँव शामिल थे जिसकी सीमाएं मंडला डिंडोरी, शोहगपुर और अमरकंटक तक विस्तृत थी।
1851 में राजा विक्रमजीत ने गद्दी संभाली। इनके दो पुत्र कुंवर अमान सिंह और कुंवर शेर सिंह। इनके दोनों पुत्र छोटे थे तब राजा विक्षिप्त हो गये और राज्य की जिम्मेदारी रानी अवंतिबाई ने संभाली। यह खबर से अंग्रेजों ने रामगढ़ राज्य को कोर्ट और वार्ड्स की कार्यवाही की, इस बीच राजा के निधन से राज्य की पूरी जिम्मेदार रानी के उपर आ गई।
1857 की क्रांति
राजा के निधन के बाद 1857 की क्रांति महाकौशल तक फैल चुकी थी। रामगढ़ के सेनापति ने भुआबिछिया में बने अंग्रेजी थाने पर कब्ज़ा कर लिया और रानी के सिपाहियों ने घुघरी में कब्ज़ा कर लिया। विद्रोह पुरे रामगढ़ में फैल गया। अंग्रेज विद्रोह को दबाने में असफल रहे।
ग्राम खैरी मंडला के पास 23 नवंबर को रानी और अंग्रजों के मध्य युद्ध हुआ और अंग्रेजों की हार हुई। जनवरी 1858 में अंग्रेजों ने घुघरी में वापस नियंत्रण कर लिया और रामगढ़ को घेर लिया। रानी अवन्ती बाई रामगढ़ से शाहपुर के नजदीक देवहार गढ़ चली गई। देवहार गढ़ की ऊँची पहाड़ी पर में रानी ने मोर्चा बनाया था।
यहाँ रानी अवंतिबाई ने गोरिल्ला युद्ध नीति अपनाई। यहाँ रानी और अंग्रेजो में घमासान युद्ध हुआ और शाहपुर के ग्राम बालपुर में 20 मार्च 1958 को रानी अवन्ती बाई ने अंग्रेजो से घिरता देख स्वयं तलवार मार ली ताकि वो अंग्रेजो के हाथ ना आ सके।
रानी के सैनिक गंभीर अवस्था में रानी को रामगढ़ ले जा रहे थे। बालपुर और रामगढ़ के बीच सूखी-तलैया के निकट वीरगति को प्राप्त हुई। रामगढ़ भी अंग्रेजो के हाथों में आ गया।
रामगढ़ में महल के खंडहरों से कुछ दूर पहाड़ी के निचे रामगढ़ की रानी अवंतिबाई की समाधी है। रानी अवन्ती बाई भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली पहली महिला शहीद वीरांगना थी।
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डिंडोरी जिले के अन्य जल प्रपात-