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premanand ji maharaj wikipedia: हेलो दोस्तों! आज हम बात करने वाले हैं परम पूज्य श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण महाराज जी के बारे में, उत्तरप्रदेश के मथुरा वृंदावन के आश्रम में निवास करने वाले महाराज “श्री प्रेमानंद गोविंद शरण महाराज जी” इन दिनों सोशल मीडिया और सुर्खियों पर छाए हुए हैं हर जगह बस इन्हीं की चर्चा हो रही हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार टीम इंडिया के बेस्ट क्रिकेटर बैट्समैन विराट कोहली श्री प्रेमानंद महाराज जी के दर्शन करने वृंदावन पहुंचे थे। यूँ तो श्री प्रेमानंद महाराज जी को हर कोई जानता है लेकिन इनके बारे में कुछ ऐसे तथ्य हैं जो अभी भी छुपे हुए हैं, चलिए आज हम बात करते हैं परम पूज्य श्री प्रेमानंद गोविंद शरण महाराज जी के सम्पूर्ण जीवन के बारे में।
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परम पूज्य श्री प्रेमानंद गोविंद शरण महाराज जी का जीवन परिचय : परम पूज्य श्री प्रेमानंद गोविंद शरण महाराज जी उत्तर प्रदेश के मथुरा वृंदावन के आश्रम में निवासरत प्रसिद्ध और विख्यात संत महात्मा है साथ ही इन्हें भारत के प्रसिद्ध कथा वाचक, धार्मिक गुरु और हिंदू धर्म प्रचारक के रूप में जाना जाता है। श्री प्रेमानंद महाराज जी आध्यात्मिक प्रवचन और भक्ति में लीन कथा वाचक के रूप में भी विख्यात है।
श्री प्रेमानंद जी महाराज राधारानी के परम भक्त में से एक है और उन्होंने स्वयं को राधावल्लभी संत के रूप में रम लिया है। कहा जाता है कि कई साल पहले श्री प्रेमानंद महाराज जी की दोनों किडनी फेल हो चुकी है फ़िलहाल पुरे दिन उनका डायलिसिस चलता है। इसके बाद भी वह पूरे दिन उपवास और आध्यात्मिक ध्यान में विलीन रहते हैं अब इसे भगवान का करिश्मा भी कह सकते हैं।
नाम |
श्री प्रेमानंद गोविन्द शरण जी महाराज |
बचपन का नाम |
अनिरुद्ध कुमार पांडे |
अन्य नाम |
पीले बाबा, वृन्दावन वाले बाबा (premanand ji maharaj) |
पिता का नाम |
श्री शम्भू पांडे |
माता का नाम |
श्रीमती रमादेवी |
जन्म स्थान |
अखरी गाँव, सरसौल कानपुर, उत्तरप्रदेश |
उम्र |
60 वर्ष |
वर्तमान पता (आश्रम) |
श्रीहित राधाकेलीकुंज वृन्दावन परिक्रमा मार्ग, वराह घाट, राधारमन कालोनी, वृन्दावन उत्तरप्रदेश, 281121 |
ऑफिसियल वेबसाइट |
premanand ji maharaj family (प्रेमानंद जी महाराज का परिवार और बचपन )
परम पूज्य श्री प्रेमानंद महाराज जी का जन्म उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के सरसौल के पास स्थित अखरी गांव की एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनका पूरा नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे था, इनके पिता श्री शंभू पांडे जी आध्यात्मिक भक्त थे, इनकी माता जी श्रीमती रमादेवी पवित्र विचारों वाली महिला थी और आसपास के सभी संत महात्माओं का बहुत आदर और सम्मान करती थी।
इनके दादाजी एक सन्यासी थे और उनके परिवार में सभी लोग संत सेवा और आध्यात्मिक भक्ति में लीन रहते थे। श्री प्रेमानंद महाराज जी के बड़े भाई श्रीमद्भागवत कथा के श्लोक सभी को सुनाते थे जिससे परिवार का वातावरण भक्तिमय, शांत और शुद्ध हो जाता था। इस भक्तिमय पारिवारिक वातावरण के बीच रहते हुए प्रेमानंद महाराज जी ने कम उम्र में ही विभिन्न प्रार्थनाएं औ रश्लोक पढ़ना शुरू कर दिया था उनके अंदर आध्यात्मिक विचारों और आध्यात्मिक जीवन को जानने की जिज्ञासा शुरू हो रही थी।
premanand ji maharaj education ((प्रेमानंद जी महाराज की शिक्षा )
श्री प्रेमानंद महाराज जी (premanand ji maharaj) जब पांचवी कक्षा में पढ़ रहे थे तभी उन्होंने गीता प्रेस प्रकाशन, श्री सुखसागर जी को पढ़ना शुरू कर दिया था। कम उम्र में ही उनके दिमाग में जीवन के उद्देश्य को लेकर कई विचार उत्पन्न होने लगे थे। वे इस विचार को लेकर काफी चिंतित थे कि माता और पिता का प्रेम चिरस्थायी है या नही, और जो सुख अस्थायी है उसमें उलझना सही है या नही। उन्होंने स्कूल की पढ़ाई में भौतिकवादी ज्ञान के महत्व पर सवाल उठाया और कैसे जीवन के लक्ष्य को साकार करने में भौतिकवादी ज्ञान का सहारा मिलेगा। इस विचार पर उत्तर जानने के लिए उन्होंने श्री राम जय राम जय जय राम और श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी का जाप शुरू कर दिया था।
जब नौवीं कक्षा में अध्यनरत थे तब उन्हें ज्ञात हुआ कि आध्यात्मिक जीवन के जरिए ईश्वर को पाने का मार्ग मिल सकता है महान उद्देश्य के साथ उन्होंने अपने परिवार को छोड़ने का निर्णय किया और अपनी माता की अपने विचार और निर्णय से अवगत कराया। मात्र 13 वर्ष की उम्र में अचानक एक दिन सुबह के 3:00 बजे प्रेमानंद महाराज जी ने घर को त्यागने का निर्णय लिया और मानव जीवन के पीछे की सच्चाई जानने के लिए निकल पड़े।
वे अपना घर छोड़कर वाराणसी आ गए और यहां उन्होंने नैष्ठिक ब्रह्मचर्य शुरू कर दिया, यहां लोग उन्हें आनंद स्वरूप ब्रह्मचारी के नाम से जानते थे उन्होंने संन्यास जीवन को अपना लिया था। उनका ज्यादातर समय गंगा नदी के किनारे बीतता था वे मां गंगा को अपनी दूसरी मां मानते थे और घंटे गंगा के किनारे भगवान शिव की भक्ति करते थे और रात के समय किसी भी आश्रम में सो जाते थे। महावाक्य स्वीकार करने के बाद उन्हें स्वामी आनंदाश्रम नाम दिया गया, उत्तर प्रदेश में बनारस की अस्सी घाट से लेकर उत्तराखंड के हरिद्वार में अन्य घाटों तक घूमा करते थे।
वे अपनी भक्तिभाव में इतने लीन रहते थे कि हर मौसम मेंगंगा में तीन बार स्नान करते थे और कभी अपने दिनचर्या अधूरा नहीं छोड़ते थे वह कई दिन तक बिना खाए-पिए ही ध्यान साधना में डूबे रहते हैं। सन्यास ग्रहण करने के कुछ वर्ष बाद भी उन्हें ऐसा अनुभव हुआ कि भगवान शिव का विधिवत आशीर्वाद होने मिल चुका है।
प्रेमानंद जी महाराज का जीवन परिचय (premanand ji maharaj biography in hindi )
एक दिन बनारस में एक पेड़ के नीचे की ध्यान कर रहे थे उसे समय श्री श्यामा श्याम जी की कृपा से वृंदावन की महिमा की तरफ आकर्षित हुए, उसके पश्चात एक संत की प्रेरणा से उन्होंने एक रासलीला में भाग लिया जो स्वामी श्रीराम शर्मा जी की ओर से आयोजित किया जा रहा था उन्होंने इस रासलीला में एक महीने तक भाग लिया। अभी सुबह के समय श्री चैतन्य महाप्रभु और रात के समय श्री श्यामा श्यामजी की रासलीला देखते थे एक महीने में ही वे इन लीलाओं से इतना आकर्षित हुए कि इसके बिना वे जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते थे।
यह समय उनके जीवन में एक बड़े बदलाव का था, स्वामी श्री राम जी की सलाह के अनुसार वे श्री नारायण दास भक्तिमाली (बक्सर वाले मामाजी) के एक शिष्य की सहायता से मथुरा जाने वाली ट्रेन में सवार होकर वृंदावन पहुंच गए। वृंदावन में शुरुआत के दिनों में महाराज जी वृंदावन की परिक्रमा करते थे और घंटों तक बांकेबिहारी जी के मंदिर में उनके दर्शन करते थे।
बांके बिहारी जी के मंदिर में उन्हें एक संत ने राधा वल्लभमंदिर जाने की सलाह दी इसके बाद प्रेमानंद महाराज जी राधावल्लभ मंदिर पहुंचे जहां वे घंटों तक राधावल्लभ जी को निहारते रहते थे। एक दिन पूज्य श्री हित मोहितमराल गोस्वामी जी ने श्रीराधारससुधानिधि का एक श्लोक सुनाया, प्रेमानंद महाराज जी संस्कृत में पारंगत थे इसके बाद भी वे इन श्लोक के अर्थ को नहीं समझ पाए।
इसके पश्चात श्री गोस्वामी जी ने उन्हें श्री हरिवंश का नाम जपने के लिए प्रोत्साहित किया पहले तो वे ऐसा करने के लिए इच्छुक नहीं थे हालांकि बाद में उन्होंने स्वयं को श्री हित हरिवंश महाप्रभु जी की कृपा से इस पवित्र नाम का जाप करते हुए पाया और वे श्री हरिवंश महाप्रभु जी की शक्ति के प्रति आश्वस्त हो गए।
एक दिन प्रातः वृंदावन में परिक्रमण के दौरान प्रेमानंद महाराज जी(premanand ji maharaj) ने सखी को श्लोक गाते हुए सुना उस श्लोक को सुनने के बाद महाराज जी ने सखी से इस श्लोक के अर्थ को समझाने के लिए कहा जिसके उत्तर में उनकी सखी ने कहा कि अगर वे इस श्लोक का अर्थ समझना चाहते हैं तो उन्हें भी राधावल्लभी बनना होगा। उसके पश्चात प्रेमानंद महाराज जी ने तुरंत ही पूज्य श्री हित मोहितमराल गोस्वामी जी से आगेकी शिक्षा और दीक्षा लेने की इच्छा जाहिर की, इसके बाद श्री गोस्वामी जी के आग्रह पर उन्होंने श्री राधावल्लभ संप्रदाय में शामिल होकर शरणागत मंत्र लिया इसके बाद उन्हें पूज्य श्री हित गौरंगीशरण जी महाराज के रूप में अपने सद्गुरु मिले महाराज जी ने 10 सालों तक अपने गुरु जी की सेवा की और उनसे आगे की शिक्षा और दीक्षा ली।
कुछ ही समय में अपने सदगुरुदेव श्री गौरंगी महाराज जी और वृंदावन धाम की कृपा से वे श्री राधा रानी जीकी भक्ति में पूरी तरह से डूब गए। अपनी सदगुरु देव जी को देखते हुए प्रेमानंद महाराज जी वृंदावन में मधुकरी नामक स्थान पर रहने लगे जहां वे सभी बृजवासियों का अत्यंत सम्मान करते थे। श्री प्रेमानंद महाराज जीके अनुसार कोई भी व्यक्ति बृजवासियों के अन्न को खाए बिना दिव्यप्रेम की प्राप्ति नहीं कर सकता।
प्रेमानंद जी महाराज को पीले बाबा क्यों कहा जाता है ?
श्री प्रेमानंद महाराज जी (premanand ji maharaj)को पीले बाबा के नाम से भी जाना जाता है, प्रेमानंद महाराज जी पीले वस्त्रों को धारण करते हैंऔर इसके साथ ही हल्दी और चंदन का तिलक लगाते हैं उनके पीले रंग की वेशभूषा के कारण उनका नाम पीले बाबा पड़ गया।
अन्न के बारें में श्री प्रेमानंद महाराज जी के क्या है विचार ?
प्रेमानंद महाराज जी(premanand ji maharaj) कहते हैं कि हम कोई संत या भक्त नहीं बल्कि श्री राधारानी जी की दासी हैं जो आठों पहर उनकी सेवा कार्य में लगे रहते हैं। श्री राधारानी जी को जो अन्न भोग लगाया जाता है वह अन्न प्रसाद बन जाता है और इस प्रसाद को पाना हमारे लिए एकादशी व्रत के फल के समान है। हम श्री राधा रानी जी को रोज विभिन्न प्रकार के पकवानों का भोग लगाते हैं और राधारानी जी की जूठन को हम प्रसाद मानकर ग्रहण करते हैं। महाराज जी का कहना है कि जो भोग हमारी श्री राधारानी जी को लगाया जाता है इस प्रसाद को हम ग्रहण करते हैं। अगर उन्हें अन्न का भोग लगाएंगे तो वही प्रसाद हम ग्रहण करेंगे और अगर उनको फल का भोग लगाएंगे तो उस फल को प्रसाद स्वरूप में हम ग्रहण करेंगे।
भगवान को कैसे पाया जा सकता है ?
श्री प्रेमानंद महाराज जीका मानना है कि अगरआपके मन मेंकिसी के लिए ईर्ष्यापी द्वेष या कोई बुरी भावना है तो आप भगवान कोकभी नहीं पा सकते हैं ईश्वर को पाने का मार्ग इतना सरल नहीं है, अगर आप ईश्वर को पाना चाहते हैंतो आपको दूसरों के प्रति कपट, स्वार्थ, जलन की भावना को छोड़कर प्रेम की भावना का संचार करना होगा इससे आप अपने प्रभु को रिझा सकते हैं।
प्रेमानंद महाराज जी से कैसे मिलें ?(How to meet premanand ji maharaj)
प्रेमानंद महाराज जी (premanand ji maharaj)से एकांत्तिक वार्तालाप करने का कोई भी शुल्क नहीं लिया जाता है, एक एकांतिक वार्तालाप में महाराज जी के सामने बैठकर उनसे अपनी समस्याओं का समाधान ले सकते हैं महाराज जी बड़े ही स्नेह पूर्वक अपने भक्तों और प्रशंसकों को उनकी समस्याओं का समाधान देते हैं।
प्रेमानंद महाराज जी को कौन सी बीमारी है ?
श्री प्रेमानंद महाराज जी को पीकेडी (पॉलीसिस्टिक किडनी रोग) रोग है। यह एक ऐसी बीमारी हैजोजेनरेशन बाय जेनरेशन चली आती है, इस बीमारी में माता-पिता के जींस संतान में आ जाते हैं। इस बीमारी के चलते महाराज जी की दोनों किडनियां हो चुकी है जिसके कारण महाराज जी को डायलिसिस करना पड़ता है। महाराज जी को किडनी देने के लिए उनके हजारों भक्त तैयार हैं लेकिनप्रेमानंद महाराज जी तुमसे किडनी लेने के लिएतैयार नहीं है, उनका मानना है कि मुझे किडनी की आवश्यकता नहीं है मैं स्वस्थ हूं और मेरे शरीर को जितने दिन चलना होगा इतने दिन चलेगा। मेरे द्वारा किसी दूसरे को शारीरिक कष्ट हो यह हमें बर्दाश्त नहीं कर सकता।
श्री प्रेमानंद महाराज जी का आश्रम कहां पर है ? (premanand ji maharaj ashram address)
दोस्तों यदि आप जानना चाहते हैं कि श्री प्रेमानंद महाराज जी का आश्रम कहां पर है तो आपकी जानकारी के लिए बताने की श्री प्रेमानंद महाराज जी का आश्रम उत्तर प्रदेश, वृंदावन के राधा रमन कॉलोनी, वाराह घाट के पास श्री हित राधा केलि कुंज वृंदावन परिक्रमा मार्ग में है। यहां अक्सर उनके भक्तों का आना-जाना लगा रहता है। उनके आश्रम में जाकर आप आसानी से उनके दर्शन कर सकते हैं।
श्री प्रेमानंद महाराज जी का पूरा नाम क्या है ?(premanand ji maharaj full name)
दोस्तों यदि आप सोशल मीडिया पर वायरल होने वाले स्वामी श्री प्रेमानंद महाराज जी(premanand ji maharaj) के पूरे नाम को जानना चाहते हैं तो आपको बता दें कि श्री प्रेमानंद महाराज जी के बचपन का असली नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे था। वर्तमान में इन्हें परम पूज्य श्री प्रेमानंद गोविंद शरण महाराज जी के नाम से जाना जाता है।
श्री प्रेमानंद महाराज जी के माता-पिता कौन हैं ?
जैसा कि आर्टिकल में ऊपर आपको उनके माता और पिता का नाम बताया गया था तो एक बार फिर आपकी जानकारी के लिए बता दें कि श्री प्रेमानंद महाराज जी के पिताश्री शंभू पांडे आध्यात्मिक भक्त थे बाद में इन्होंने संन्यास ग्रहण कर लिया था इनकी माता श्रीमती रमादेवी पवित्र विचारों वाली महिला थी।बचपन में यह अपने माता-पिता से भक्ति को लेकर काफी ज्यादा प्रभावित होते थे।
श्री प्रेमानंद महाराज जी क्यों है चर्चा में ?
श्री प्रेमानंद महाराज जी(premanand ji maharaj) इन दिनों काफी चर्चा में बने हुए हैं क्योंकि हाल ही में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर संघ संचालक मोहन भागवत जी और टीम इण्डिया के बेस्ट क्रिकेटर बेट्समेन विराट कोहली अपनी पत्नी अनुष्का शर्मा और अपनी बेटी के साथ प्रेमानंद महाराज जी का आशीर्वाद लेने पहुंचे थे।
FAQ’S
श्री प्रेमानंद महाराज जी का जन्म कहां हुआ था ?(premanand ji maharaj birth place)
श्री प्रेमानंद महाराज जी का जन्म उत्तरप्रदेश के कानपुर जिले में सरसौल के पास स्थित अखरी गांव में हुआ था।
श्री प्रेमानंद महाराज जी के गुरु कौन हैं ?
श्री प्रेमानंद महाराज जी(premanand ji maharaj) के सतगुरु पूज्य श्री गौरंगी शरण महाराज जी है।
प्रेमानंद जी महाराज का गांव कौन सा है?
प्रेमानंद जी महाराज का गाँव सरसौल के पास अखरी गाँव कानपुर जिला में है।
प्रेमानंद महाराज की किडनी कब से खराब है?
प्रेमानंद जी महाराज की किडनी 17 सालों से ख़राब है।
प्रेमानंद जी महाराज का पूरा नाम क्या है ?
प्रेमानंद जी महाराज का पूरा नाम श्री हित प्रेमानंद गोविन्द शरण जी महाराज है।
प्रेमानंद जी महाराज का असली नाम क्या है?
प्रेमानंद जी महाराज का असली नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे है।
प्रेमानंद महाराज को कौन सी बीमारी है?
प्रेमानंद महाराज को पीकेडी (पॉलीसिस्टिक किडनी रोग) रोग है।
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