शहद | Honey : जानिए मधुमक्खी से सम्बंधित रोचक तथ्य और इसके 6 प्रकार | शहद के फायदे नुकसान

mekalsuta
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शहद | Honey

मधुमक्खी : आज का यह लेख औषधि गुणों से भरे शहद के विषय में है। वर्तमान में शहद का उपयोग हर घर में वर्ष भर होता है और इसकी मांग हमेशा बनी रहती है। शहद का उत्पादन से किसानों को निश्चित ही लाभ मिलता है, क्योंकि वर्तमान जीवन में शहद का उपयोग प्रतिदिन औषधि के रूप, पूजा में या अन्य कारणों से किया जाता ही है।

शहद | Honeyमध्य प्रदेश के मंडला, डिंडोरी और अमरकंटक क्षेत्र में अधिक जंगल, पहाड़ और गुफा होने से काफी मात्रा में शहद का उत्पादन प्राकृतिक रूप से होता है। इस क्षेत्र के जंगलों में भरपूर जड़ी-बूटियां प्राप्त होती है और औषधि गुण का शहद स्वास्थ्य वर्धक होता है।

यहाँ के उमदा किस्म के शहद का प्रचार-प्रसार किया जाये तो शहद को अच्छा बाजार और स्थानीय लोगो को रोजगार मिलेगा। मंडला डिंडोरी और अमरकंटक क्षेत्र में बैगा जनजाति द्वारा जंगल से शहद लाया जाता है जो शुद्ध और अच्छी गुणवत्ता का होता है।  

मधुमक्खी क्या है ? What is a bee?

मधुमक्खी कीट वर्ग का प्राणी है अर्थात यह उड़ने वाले कीड़े है। ये पृथ्वी के अन्टार्कटिका महाद्वीप को छोड़कर सभी जगह पाई जाती है। यह हमारे पारिस्थिकी तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा है। शोध से ज्ञात हुआ है की मधुमक्खी के प्रयासों से ही हमारे भोजन का हर तीसरा हिस्सा तैयार होता है अर्थात मधुमक्खी परागन क्रिया के दौरान इतने खाद्य पदार्थों को परागित करती है जैसे फल, सब्जियां आदि जो हमारे भोजन को स्वादिष्ट और पोष्टिक बनाता है।

मधुमक्खी से मधु प्राप्त होता है। यह झुण्ड बना कर रहती है और मोम से छत्ते बनाकर रहती है। इसमें एक रानी (मादा) मधुमक्खी होती है और कई सौ नर (ड्रोन) और बाकि कर्मचारी/श्रमिक मधुमक्खी होते है। इसके वंश एपिस में 7 जातियां और 44 उपजातियां है। 

  • रानी मधुमक्खी – एक छत्ते में सिर्फ एक रानी मधुमक्खी होती है या पूर्ण विकसित मादा होती है और यह सभी मधुमक्खी की माँ होती है। इसका काम सिर्फ अंडे देना होता है यह आकार में अन्य मधुमक्खी से बड़ी और चमकीली होती है और लम्बे पेट और छोटे पंख के इसकी अलग पहचान है। ये प्रतिदिन 1500 अंडे दे सकती है।
शहद | HONEY
रानी मधुमक्खी
  • नर/ड्रोन मधुमक्खी –  नर मधुमक्खी को ड्रोन भी कहा जाता है। मौसम और प्रजनन काल में इनकी संख्या कम- ज्यादा होती रहती है। इनका केवल एक काम है रानी मधुमक्खी का गर्भाधान/ सम्भोग करना। ये संभोग के तुरंत बाद मर जाते है और यह डंक मारने में सक्षम नहीं होते है। 
शहद
नर/ड्रोन मधुमक्खी
  • कर्मचारी/श्रमिक मधुमक्खी- यह छत्ते में मधुमक्खी की आबादी का 99% हिस्सा होती है। सभी श्रमिक मधुमक्खी मादा होती है और ये सब काम करती है,जैसे लार्वा (बच्चे मधुमक्खियों) को खिलाने से लेकर, रानी की देखभाल करने, छत्ते की सफाई करने, भोजन इकट्ठा करने, छत्ते के निर्माण तक सभी काम करती है। इनका डंक कटीला होता है। 
शहद
श्रमिक मधुमक्खी

मधुमक्खी के प्रकार | Types of bees

विश्व में मधुमक्खी की अनेक प्रजातियां पाई जाती है। मधुमक्खी की कुछ प्रजातियों से भारतीय प्राचीन काल से परिचित रहे हैं। विभिन्न निवास स्थान पर छते बनाने का यह तरीका उन्हें आक्रामक या शांतिपूर्ण बना है। भारत में पाई जाने वाली मधुमक्खियों के प्रकार निम्न है- 

  • एपीस डोरसाटा लाईबोरियोसा / हिमालयन मधुमक्खी- यह दुनिया की सबसे बड़ी मधुमक्खी है। ये मधुमक्खी हिमालय में 2500-3000 मी. की ऊंचाई में पाई जाती है। ये मधुमक्खी हिमालय के पर्वत शृंखला में कुदरती रूप से परागण कर मादक प्रभाव के लाल शहद का उत्पादन करती है। इनके आक्रामक स्वाभाव के कारण इनका पालन करना संभव नहीं है। 
शहद
एपीस डोरसाटा लाईबोरियोसा / हिमालयन मधुमक्खी
  • एपीस डोरसाटा / जंगली मधुमक्खी – स्थानीय नाम “भ्रामर” है। यह हिमालयी मधुमक्खी की ही एक उपप्रजाति है। जंगल में पेड़ के शाखाओं में इनका छत्ता पाया जाता है। इसके अलावा ऊँचे मकानों और चट्टानों आदि में इनके विशाल छत्ते होते है और इनका स्वभाव आक्रामक होता है, इसलिए इनका पालन नहीं किया जा सकता है। ये जंगल से प्राकृतिक परागण का काम करती है।
एपीस डोरसाटा / जंगली मधुमक्खी
  • एपिस मेलिफेरा / इटेलियन मधुमक्खी – इसे यूरोपियन मधुमक्खी भी कहते है। इनके छत्ते खेतों के आस-पास वृक्षों के तनों में पाए जाते है। धूप, वर्षा और शिकारियों से बचाने हेतु इनके अधिकतर छत्ते अँधेरी जगहों में बनाते है। इनका कम हिंसक होने के कारण हम इनका पालन कर सकते है और लकड़ी के बॉक्स या पेटी में आसानी से पाल सकते है। मधुमक्खी पालन में सबसे अधिक इनका ही उपयोग किया जाता है।
एपिस मेलिफेरा / इटेलियन मधुमक्खी
  • एपिस सेरना इंडिका / भारतीय मधुमक्खी- स्थानीय भाषा में इसे “सात-पुड़ी मधुमक्खी” कहते है। इटेलियन मधुमक्खी से थोड़ी ज्यादा आक्रामक होती है, लेकिन पारस्परिक और शांतिपूर्ण व्यवहार से इनका भी पालन किया जा सकता है। इनके द्वारा उत्पादित शहद सर्वाधिक पोषण वाला होता है।
एपिस सेरना इंडिका / भारतीय मधुमक्खी
  • एपीस फ्लोरिया / छोटी मधुमक्खी- पातिक मधुमक्खी के नाम से जाने जाने वाली ये मधुमक्खी अपने छत्ते छोटे पेड़ में बनती है। इनके द्वारा कम मात्रा में हनी का उत्पादन होता है और निम्न उत्पादकता के कारण इनका प्रयोग मधुमक्खी पालन में नहीं किया जा सकता है।
एपीस फ्लोरिया / छोटी मधुमक्खी
  • ट्रायगोना एपी / सबसे छोटा मधुमक्खी – यह विश्व की सबसे छोटी मधुमक्खी होती है और डंक रहित होती है। 
ट्रायगोना एपी / सबसे छोटा मधुमक्खी

मधुमक्खी शहद | मधु कैसे बनती है? How do bees make honey? 

मधुमक्खी के दो पेट होते है एक खाना खाने के लिए दूसरा विशेष पेट फलों का रस इकठ्ठा करने के काम आता है। संचरण मधुमक्खी फूलों के रस को चूसकर अपने विशेष पेट में रखती है और छाते में आकर चबाने वाली मधुमक्खी को दे देती है। चबाने वाली मधुमक्खी रस इकठ्ठा कर लगभग 30 मिनट तक चबाती है।

इस क्रिया के दौरान उनके एंजाइम रस को एक ऐसे पदार्थ में बदलते है जिसमे पानी के साथ शहद शामिल होता है, एंजाइम रस मिलने के बाद यह सुक्रोज, ग्लूकोज और फ्रक्टोज में टूट जाते है। और इसके बाद इसे मधु कोषों में डाल देती है, ताकि पानी वाष्पित हो जाये और शहद पतला ना हों।हनी के उत्पादन क्रिया हो जाने पर दूसरी मधुमक्खी मोम से छत्ते के कोषों को बन कर देती है ताकि हनी सुरक्षित रहे। 

मधु के प्रकार | Type of Honey 

शहद के कई प्रकार होते है,इसमें बनावट के आधार में, प्रसंस्करण के स्तर के आधार पर, अमृत स्त्रोत के आधार में, और कई तरह से वर्गीकृत कर सकते है। यहाँ हम आयुर्वेद के आधार पर  मधुमक्खी के द्वारा तैयार किये जाने वाले हनीके प्रकार के बारे में चर्चा करेंगे। इन शहद का नाम उनको बनाने वाली मधुमक्खी के आधार पर ही रखा गया है- 

माक्षिक मधु – यह पीले रंग की बड़ी मधुमक्खी के द्वारा बनाया गया तेल जैसे रंग का शहद होता है। इसका प्रयोग कर आँखों के रोग. पीलिया, बवासीर, क्षत, श्वास, क्षय और खांसी को दूर करने के लिए कर सकते है। 

भ्रामर मधु – भौरों के द्वारा बनाया जाता है और यह स्फटिक मणि जैसा निर्मल, चिकना और शीतल होता है। इसके उपयोग से खून की गंदगी साफ़ होती है, मूत्र में शीतलता लाने का भी कार्य करता है।

क्षोद्र मधु छोटी पिंगला मधुमक्खी के द्वारा बनाया जाता है। कहा जाता है की यह मधुमेह का नाश करने वाला शहद होता है 

पौतिक मधु – मच्छर जैसी दंश से अति पीड़ा देने वाली मधुमक्खी द्वारा निर्मित शहद है। यह सुखा और गरम होता है इसका प्रयोग जलन,पित्त, रक्तविकार,मधुमेह नाशक, गांठ में किया जाता है। 

छात्र मधु – हिमालय में पाई जाने वाली पीले रंग की वरता मधुमक्खी के द्वारा छत्राकार छत्ते में इसका उत्पादन किया जाता है। यह चिकना, शीतल और भारी होता है और चर्म रोग, कीड़े, मधुमेह में इसका प्रयोग किया जाता है। 

आर्ध्य मधु – भ्रमर के जैसी और तेज मुख वाली पीली मक्खियों के द्वारा बनाया गया शहद आर्ध्य शहद कहलाता है। यह आंखों के लिए लाभकारी, कफ तथा पित्त को ख़तम करने वाला है।

औद्दोलिक मधु – यह मीठा शहद होता है और बहुत कठिनाई से इसे प्राप्त किया जाता है इसका प्रयोग गले की खराश कम करने कोढ़ या जहर को कम करने में करते है। 

इसके अलावा बाजार में मिलने वाले अन्य शहद जैसे मनुका शहद, कल्वर शहद, लेदर वुड शहद, बकवीट शहद, रोजमेरी शहद आदि मिल जायंगे शोधन क्रिया के आधार पर शहद का प्रकार निष्कासित शहद, तरल शहद और रवेदार शहद, निचोड़ने से प्राप्त शहद आदि भी शहद के प्रकार है। 

मधु के लाभ/फायदे 

  • वजन कम करने में- हनी में वजन को बढ़ने से रोकने के गुण होते है शहद में एंटीओबेसिटी प्रभाव होता है जिससे वह मोटापे को नियंत्रित करता है। 
  • तनाव कम करना– हनी में एंटीडिप्रेसेंट गुण पाया जाता है जिसमें अवसाद या तनाव को कम करने का गुण होता है अगर कोई गंभीर रूप से तनाव ग्रस्त है तो उन्हें बिना देर किये डॉ से सलाह लेनी चाहिए। 
  • मधुमेह रोग में – हनी में एंटीडायबिटीज और हाईपोग्लाईसेमिक गुण होता है जो रक्त में ग्लूकोज के स्तर को कम करके मधुमेह को नियंत्रित करता है। 
  • उच्च रक्तचाप- हाई ब्लड प्रेशर को दूर करने के लिए हनी का सेवन कर सकते है। शोध में पाया गया है की हनी में केरसेतिन नमक फ्लेवोनोइड पाया जाता है जो रक्तचाप को कम करने में सहायक होता है। 
  • रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में- हनी में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट दिल के लिए बहुत लाभकारी हैं। इसके अलावा शहद के प्रयोग से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा सकते है। इम्युनिटी पॉवर मजबूत होने से संक्रामक बीमारियों से लड़ने की शक्ति मिलती है। 
  • गले की खराश- खांसी और सर्दी-जुखाम होने पर आपके खराब गले को शहद के सेवन से ठीक किया जाता है। जल्दी आराम पाने के लिए एक चम्मच अदरक के रस में एक से दो चम्मक हनी मिलाकर शुभ शाम सेवन करना चाहिए।
  • कब्ज में- पेट से जुडी कई कई समस्या जैसे कब्ज, गैस आदि हमें कमजोर बनाते है हनी शरीर में फ्रक्टोज के अवशोषण को कम करती है शहद कब्ज़ को दूर करने में उपयोग कर सकते हैं।

मधु के नुकसान | Side Effects of Honey

अधिक मात्रा में मधु के सेवन से कई नुकसान है किसी भी चीज के लाभ और हानी दोनों पक्ष होते है हनी के नुकसान निम्न है – 

  • पराग कणों से एलर्जी होने पर हनी का सेवन नहीं करना चाहिए। 
  • इसके अधिक सेवन से पेट दर्द की समस्या हो सकती है। 
  • इसका अधिक सेवन ब्लड सुगर को अस्थिर करता है क्योंकि इसमें फ्रुक्टोज भी पाया जाता है।
  • आधुनिक शोध के ज्ञात हुआ है की एक साल से कम उम्र के बच्चों को हनी नहीं खिलाना चाहिए इससे बच्चों में बोटूलिज्म रोग का खतरा हो सकता है। 

कंटेंट क्रेडिट – google.com

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